Nirjala Ekadashi Vrat |
निर्जला एकादशी का व्रत
निर्जला एकादशी का व्रत हर वर्ष जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ता है, इस वर्ष इसकी तिथि 2 जून को है यह व्रत भगवान विष्णु जी का अति प्रिय व्रत है हर वर्ष में 24 एकादशी होती है परंतु निर्जला एकादशी का व्रत अति विशेष माना जाता है और जो व्यक्ति हैं अगर यह व्रत रखता है तो वह सभी तरह के पापों से मुक्त हो जाता है और बाकी सभी एकादशियो का भी पुण्य उस व्यक्ति को प्राप्त हो जाता है ।
एकादशी व्रत क्या है
एकादशी व्रत भगवान विष्णु जी का अति प्रिय व्रत है और यह हर मास (महीने) में दो बार आता है हर महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष होते हैं और दोनों 15-15 दिनों के होते हैं हर पक्ष के 11वे दिन को ही एकादशी कहते है यानि की हर महीने में दो एकादशी होते हैं इस तरह फिर साल भर में 24 एकादशी व्रत आते हैं परंतु कभी-कभी अधिकमास जा मलमास के वर्ष में 26 एकादशी भी होते हैं एकादशी का मतलब ही होता है ग्यराह यानि जो व्रत मास के 11वे दिन को होता है ।
इस दिन क्या करना चाहिए
इस व्रत के दिन हमें सात्विकता का अत्यंत ध्यान रखना चाहिए, लहसुन, प्याज, मास इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाए तथा नहा धोकर भगवान विष्णु जी का अभिषेक दूध और केसर से करें सिर्फ फलाहार ही करें और फलों में सिर्फ केला, आम और अंगूर को शामिल करें बाकी किसी फलों को नहीं । इसके साथ सूखे मेवे ड्राई फ्रूट जैसे बादाम, पिस्ता, काजू इत्यादि भी खा सकते हैं ।
इस व्रत की शुरुआत एकादशी के एक दिन पहले से ही हो जाती है इसलिए एक दिन पहले भी शाकाहार भोजन करे और लहसुन, प्याज का सेवन ना करें व्रत के दौरान अगर कुछ सेवन करना हो तो पहले भोग लगाकर ही खुद खाएं ।
इस व्रत में क्या-क्या नहीं करना चाहिए
इस व्रत के दोरान कभी भी अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि अन्न खाना वर्जित है मांस, मछली का सेवन भी अनिवार्य है गाजर और मूली भी नहीं खानी चाहिए इस दिन घर में झाड़ू भी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इस व्रत के दौरान कोई पाप नहीं होना चाहिए इस व्रत को रखते हुए अधिक नहीं बोले बल्कि शांत रहने का प्रयास करें बाल कटवाना भी वर्जित है ।
ब्रह्मचर्य का पालन करें और अपने क्रोध पर अंकुश लगाएं । इस दिन हमें किसी भी व्यक्ति के साथ छल कपट नहीं करना चाहिए तथा अपने मन में किसी भी तरह का द्वेष ना रखें और किसी से इर्षा भी ना रखें बल्कि दया का भाव रखें तथा दान भी जरूर करें इस व्रत के दिन चावल बिल्कुल नहीं खाएं एकादशी व्रत के दिन दातुन भी नहीं करनी चाहिए लेकिन हां पानी से कुल्ला कर सकते हैं पत्तों से (जैसे अमरुद, जामुन) दांतो को माझ सकते हैं परंतु वह पत्ते पेड़ से ना तोड़ कर गिरे हुए होने चाहिए ।
एकादशी व्रत की शुरुआत कैसे और कब हुई
एक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने सृष्टि का निर्माण किया उस समय सब तरह के तत्वों और वस्तुओं के साथ पाप भी उत्पन्न हुआ और पाप से पाप पुरुष का भी जन्म हुआ, थोड़े ही समय में पाप मानव में शीघ्रता से फैलने लगा और हर पाप करने पर यमराज उन्हें पाताल लोक में ले जाकर यातनाएं देते हैं यह सब यातनाएं देखकर भगवान विष्णु जी के मन में बहुत दया आ गई और उन्होंने अपने शरीर से एक देवी को प्रकट किया जिनका नाम था एकादशी और उनका काम था मनुष्यों के पापा को हर लेना जो भी एकादशी का व्रत रखता वे अपने पापो मुक्त हो जाते यह सब देखकर पाप पुरुष ने विष्णु जी से कहा सब अगर पाप मुक्त हो जाएंगे तो फिर मेरा क्या कार्य रह जायेगा अत मुझे समाप्त कर दीजिए फिर विष्णु जी ने पाप पुरुष को कहा कि तुम एकादशी के दिन अनाज में विराजमान हो सकते हो उसी कारण हमें एकादशी व्रत के दिन अन्न का त्याग करना चाहिए क्योंकि पाप इस दिन अन्न के भीतर विराजमान हो जाते है ।
एक दूसरी कथा के अनुसार युगो युगो पूर्व एक राक्षस हुआ जिसका नाम था मुर और उसने गौर तपस्या करके भगवान शिव से कई वरदान प्राप्त किये और अजय हो गया उसके पश्चात वे स्वर्ग लोग जीत कर हाहाकार मचाने लगा तब भगवान हरि विष्णु जी ने उस राक्षस के साथ विशन युद्ध किया और युद्ध करते हुए वह एक गुफा में जाकर विश्राम करने लगे परंतु राक्षस वहां पहुंच गया और जैसे ही विश्राम करते हुए भगवान विष्णु पर वार करने लगा उसी समय भगवान विष्णु के हृदय से एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने राक्षस का वध कर दिया, भगवान हरि विष्णु जी ने यह सब देखा और वे देवी से बोले आप मुझसे कोई वरदान मांगे, देवी ने कहा आप जो चाहे वरदान मुझे दे सकते हैं प्रभु भगवान विष्णु ने कहा कि आज मास का ग्यारवा दिन है इसलिए आपका नाम एकादशी होगा और अज से आप भी मेरे साथ पूज्य जाओगे और जो एकादशी का व्रत मास के दो दिन निष्ठा के साथ रखेगा तो उस भगतजन पर मेरी विशेष कृपा बनी रहेगी और उसे बैकुंठधाम प्राप्त होगा ।
अगर कोई भगतजन मास के दोनों एकादशी व्रत पूरी निष्ठा और विधि पूर्वक रखता है और ब्रह्मचर्य का पालन करता है तो उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती चली जाती है और वह भक्तजन भगवान हरि विष्णु जी की विशेष कृपा का पात्र बनता है तथा उसे बैकुंठधाम भी प्राप्त होते हैं ।
निर्जला व्रत को भीम एकादशी क्यों कहा जाता है ।
बात महाभारत के
समय की है एक बार पांडू पुत्र भीमसेन ने सोचा कि मुझे भी बाकी परिवार सहित एकादशी का व्रत रखना चाहिए, क्योंकि उन्हें भोजन अति प्रिय था इसलिए वह कोई एकादशी का
व्रत नहीं रख पाते थे तो वह महर्षि महर्षि व्यास जी के पास जाते हैं और इसका
समाधान पूछते हैं तब महर्षि व्यास जी उनको यह कहते हैं कि अगर तुम वर्ष के 24 एकादशी व्रत न भी रख सको तो तुम केवल एक निर्जला एकादशी का
व्रत पूरी श्रद्धा से रखकर सभी 24 एकादशियो का फल
प्राप्त कर सकते हो उसके बाद पांडु पुत्र भीम जी हर वर्ष निर्जला व्रत रखते थे , और तब से इस व्रत को भीम एकादशी भी कहा जाने लगा ।
निर्जला व्रत के दिन क्या करना चाहिए ।
इस दिन सूर्यास्त से पहले उठ जाए और सुबह नहा धोकर नए
वस्त्र पहने और भगवान विष्णु जी की आराधना करें और उन्हें तुलसी के पत्ते चढ़ाएं
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को निवेद चढ़ाये, उसके बाद सबको
प्रसाद दे, इस दिन घर पे झाड़ू न लगाएं। इस व्रत में पानी बिल्कुल
भी नहीं पीना होता है, इस दिन परिवार का कोई सदस्य तामसिक भोजन ना करें और
ना ही तामसिक भोजन घर में बने। इस दिन दान करने का भी प्रावधान है, दान में आप फल, पंखी,खरबूजे, जल से भरा मटका ,छाता दे सकते हैं उत्तरी भारत में दानी लोग सड़कों पर छबीलो
का प्रबंध करते हैं और राह चलते लोगों को ठंडी और मीठी
शरबत पिलाते हैं ताकि इस असहनीय गर्मी से निजात मिली ।
व्रत का शुभ मुहूर्त 1 जून दोपहर 2:57 से लेकर 2 जून 12: 04 बजे तक है। यह व्रत इतनी गर्मी के मौसम में पड़ता है जिसमें
प्यास लगना एक आम बात है लेकिन फिर भी भक्तजन विष्णु भगवान जी के इस व्रत को पूरी
श्रद्धा के साथ रखते हैं ।
अगर आपको मेरी यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर कर दे धन्यबाद ।
0 टिप्पणियाँ
कोई सवाल या सुझाव के लिए हमें कमेंट करे