kya hum alien hai |
Kya Hum Is Prithvi Ke Nahi Hai
मानव इस पृथ्वी पर 200000 साल पहले आया और फिर धीरे-धीरे समय के साथ आधुनिक युग (यानी आज का इंसान) बन पाया ऐसे करने में इसने कई चीजें बदलती हुई देखी जैसे हिम खंडों का पिघलना, नई तरह के खाद्य पदार्थों का सेवन कर भरण-पोषण करना और अपने शरीर में कई बदलाव होते देखे जिसकी बदौलत आज का मानव सीधे चलना सीख पाया, चेहरे के कई विकार दूर हुए और सोचने समझने की शक्ति का विकास हुआ।
यह सवाल कई बार हर किसी ने सोचा जरूर होगा कि क्या हम इसी पृथ्वी के वासी हैं या फिर बाहर किसी दूसरे ग्रह पर से इस पृथ्वी पर आए हैं क्या कभी हमारे पूर्वज किसी दूसरे ग्रह से इस पृथ्वी पर उतरे हो सकते हैं या नहीं, ठीक यही सवाल पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व अनक्सागोरस ने भी सोचा और उन्होंने अपनी थ्योरी दी जिसका नाम था पैंसपरमियां थ्योरी जहां पैंसपरमियां का अर्थ होता है ''Seeds Everywhere'' यानी कि जीवन के बीज ब्रह्मांड में हर जगह बिखरे पड़े हैं ।
आखिर किसने बताई यह थ्योरी ।
अनक्सागोरस का जन्म क्लेज़ोमेनोई, तुर्की में लगभग 500 ईसा पूर्व में हुआ उन्होंने अपने थ्योरी में इस बात पर जोर दिया है कि जीवन किसी दूसरे खगोलीय पिंड या ग्रह से पृथ्वी पर आया हो सकता है । बहुत सारे वैज्ञानिकों और विचारको ने इसके बारे में अपने अपने मत रखें , और काफी सारे शोध भी इसी क्रम में किए गए। 1743 में फ्रांस के प्राकृतिक इतिहासकार Benoit de Maillet ने भी इसपे अपने विचार दिए, उसके बाद वैज्ञानिक Jans Jacob Berzelius(1749-1848), Lord Kelvin (1824-1907) और Hermann Von Helmholtz (1821-1894) ने भी इस विषय पर शोध किए। स्वीडन के रसायन शास्त्री Svants Arrhenius जिनको सन 1903 में रसायनशास्त्र का नोबेल प्राइज मिला था, का पूर्ण मत था कि पृथ्वी पर जीवन बाहिरि उल्का पिंडो (Meteorite, Meteors) द्वारा ही लाया गया होगा ।
हाल ही के वर्षों में काफी सारे ऐसे उल्कापिंडो और धूमकेतुओ के टुकड़ों पे शोध किए गए जिसमें उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया गया और परिणाम काफी चौंकाने वाले थे जिसमें यह पता चला कि उन उल्का पिंडो में अमीनो एसिड के कण विद्वान थे यह एमिनो एसिड ही वो वह बुनियादी जीवनदयाक कण है जो हर किसी जैविक वस्तु में पाया जाता है, और जिसके मिलने से प्रोटीन का निर्माण होता है और शुक्ष्म कोशिका से लेकर बड़े बड़े जीवों का निर्माण प्रोटीन से ही होता है ।
ऐसा माना जाता रहा है कि जीवन के प्रारंभिक बुनियादी शुक्ष्म कण सुदूर अकाशगंगाओ से उल्का पिंडों के द्वारा लंबा सफर तह करते हुए ऐसे ग्रह पर गिरते हैं जहां उन्हें रहने योग्य वातावरण मिल जाता है वहाँ वे अपनी जनसंख्या बढ़ाने लगते है और फिर धीरे-धीरे क्रमनागत उन्नति (Evolution) होना शुरू हो जाता है। सफर के दौरान यह सूक्ष्मजीव निष्क्रिय अवस्था में होते हैं और अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों को सहन करते रहते हैं क्योंकि पृथ्वी पर भी कुछ ऐसे (Bacteria) जीवाणु मिले है जो कई उच्च डिग्री का तापमान सहन कर जीवित ही मिले हैं और कुछ सौ माइनस डिग्री के तापमान पर भी जीवित रहते हैं और पनपते रहते हैं ।
नई तकनीक के साथ नई खोजे
जैसे Tardigrade जिसको "वाटर बियर" भी कहते हैं यह ऐसी सूक्ष्म जीव है जो अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों में भी रह लेते है, पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति (जीवाश्म से पता चला) 3.8-3.5 अरब साल पहले हुई थी। आज उच्चतम तकनीकों के द्वारा यह पता चल पाया है कि कभी कुछ ग्रहों और उपग्रहों जैसे मंगल, Europa और Enceladus पे जीवन रहा होगा और फिर शायद वहाँ से किसी उल्का पिंडो के द्वारा ही पृथ्वी पे आया हो और तो यह भी पता चला है कि पृथ्वी पे लगभग 4 अरब साल पहले उल्कापिंड की बोछार हुआ करती थी और फिर जब सब शांत हो गया तो ही जीवन की उत्पत्ति हुई।
कुछ साल पहले रूस के "FOTON" उपग्रह द्वारा कुछ जीवाणुओ को मिट्टी,छोटे पत्थर और मंगल ग्रह के उल्का पिंडों के साथ मिश्रित कर अंतरिक्ष में छोड़ा गया और फिर करीब 2 हफ्तों बाद देखे जाने पर पता चला कि वह जीवित है आगे और शोध करने पर काफी हैरान करने वाले तथ्य सामने आए कि अंतरिक्ष में परावैगनी विकिरण (UV Radiation) की अनुपस्थिति में जीवाणु लगभग 6 सालों तक जीवित रह सकते हैं और अगर जीवाणु किसी चट्टानों के अंदर विराजमान रहे तो 6 साल तक जीवित रह कर दूर सुदूर की आकाशगंगाओ तक सफर तह कर सकते हैं।
पैनस्पर्मिया थ्योरी के तीन प्रकार है ।
1. LithosPanspermia = इसके मुताबिक एक उल्का पिंड एक सौर मंडल के ग्रह से निकलकर दूसरे सौरमंडल के ग्रह पर पहुंचता है और वहां इस नए ग्रह पर जीवन के बीज का रोपण करता है।
2. Ballistic Panspermia = इस थ्योरी में यह कहा गया है कि जीवन का बीज एक सौर मंडल के ग्रह से उसी सौरमंडल के दूसरे किसी ग्रह पहुंच सकता है और यह सब हो पाता है उल्का पिंडों की मदद से।
3. Directed Panspermia = इस थ्योरी में यह समझा जाता है कि कभी किसी दूर सुदूर के सौरमंडल या आकाशगंगा से आई उच्चतम स्तर की सभ्यता किसी दुसरे आकाशगंगा के सुदूर ग्रह पर जीवन के बीज छोड़ देती है जिसकी वजह से उस ग्रह पर जीवन का विकास हो पाता है ।
अब यह तो पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता कि क्या सच में हम इस पृथ्वी के है या नहीं परंतु ऐसा सोचने के हम प्रयास तो कर रहे हैं ताकि जीवन की उत्पत्ति का रहस्य सुलझ सके।
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1 टिप्पणियाँ
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