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Water cycle kya hota hai

Water cycle kya hota hai, Water cycle explaination
 Water cycle in Hindi

Water Cycle kya hota hai

आज मैं आपको यह बताऊगा की Water Cycle (जल चक्र) क्या होता है। जल हम सबके लिए बहुत जरुरी होता है। क्योंकि हमारे जीवन में जल का बहुत महत्व होता है प्यास लगने पे हम जल ग्रहण करते है, साथ में कपडे धोने ,सफाई करने ,खाना बनाने ,खेतो को सींचने, आदि में जल का ही प्रयोग किया जाता है। अगर हम बात करे की water cycle क्या है तो यह एक ऐसा चक्र है जिसमे जल अपनी तीन रूपों (ठोस ,तरल और बाष्प) में थल और हवा में घूमता रहता है, हम जो पानी पीने के लिए ,नहाने के लिए ,कपङे धोने ,आदि के लिए इस्तेमाल करते है वो कहा से आता है क्या पता यह पानी समुद्र से आया हो ,पेड़ो के अंदर से निकला हो , नालो से या फिर झरनों में से आया हो । यह तो हम सब जानते है कि हमारे सोर मंडल के सभी ग्रहों में से केवल पृथ्वी ही एक ऐसा गृह है ,यहाँ पानी के विशाल भण्डार उपलब्द है हमारी पृथ्वी का अपना एक वायुमंडल (Atmosphere) होता है ,जो पृथ्वी की सतह से ऊपर कई मीलो तक फैला होता है । जल अपनी तीन अवस्थायों ठोस (Solid), तरल (Liquid) और वाष्प (Water vapour) के रूपों में इसी वायुमंडल में विद्धमान रहता है ।

जल चक्र क्या है ?
जल की मात्रा पृथ्वी पे सीमित है , जल कई करोड़ों बर्षो से पृथ्वी पे विराजमान है और जल परक्रिया द्वारा समय समय पर अपनी जगह बदलता रहता है कभी यह समुद्र से हवा में चला जाता है ,और फिर कभी हवा में तैरता हुआ कई मिलो दूर तक सफर करता हुआ वर्षा के रूप में वापिस धरती पे आ जाता है कही पे ये जल बर्फ के रूप में विधमान है और दूसरी और ये बाष्प के रूप में हवा में ही इधर उधर घूमता रहता है

'यह एक लगातार चलने वाला ऐसा सिलसिला या चक्र है, जिसमे जल पहले सूर्य की गर्मी से पृथ्वी से वाष्प बनकर वाष्पीकरण परक्रिया (Evaporation), के द्वारा वायुमंडल में चला जाता है ,बहुत ऊपर पहुचने पे ये वाष्प संघनन परक्रिया (Condensation), द्वारा ठंडी होकर छोटी छोटी पानी की बूदो में बदल जाती है , जब ये एक साथ मिलके बड़ी बड़ी बूदे बन जाती है फिर ये बूदे अवक्षेपण प्रक्रिया (Precipitation) द्वारा पृथ्वी पे वर्षा ,बर्फ या फिर ओलो बनकर पृथ्वी पे वापिस आ जाती है ,उसके बाद दोबारा पानी नदियों ,झरनों से होता हुआ समुद्र में इक्कठा होता है जहा से फिर दोवारा से वाष्पीकरण परक्रिया, संघनन परक्रिया और अवक्षेपण परक्रिया द्वारा पानी का यह चक्र चलता रहता है । ''

जल चक्र के मुख्य चार चरण होते है 


1. वाष्पीकरण परक्रिया (Evaporation) = हम सब ने देखा होगा की जब भी किसी बर्तन में हम पानी को आच पे उबालते है तो पानी भाप बनकर उड़ जाता है और धीरे धीरे में पानी का स्तर गिरता चला जाता है, ठीक इसी तरह जब समुद्र ,झीलों और तालाबो पे सूरज की तेज़ धूप पड़ती हे तो पानी गरम होकर उबलने लगता है और फिर पानी धीरे धीरे भाप बनकर ऊपर की ओर उठता है यही है वाष्पीकरण जो की सूरज के ताप पे और जल स्रोत के आसपास की हवाओ पे निर्भर होता है । जितना सूरज का ताप ज्यादा होगा उतनी तेज़ मात्रा से वाष्पीकरण होगा और यह एक प्राक्रतिक क्रिया है जो लगातार चलती रहती है , सबसे ज्यादा वाष्पीकरण महासागरो में होता है क्युकी इनमे पानी की अपार मात्रा होती है ,तथा ये क्रिया भूमध्य रेखा (Equator) के पास अधिक मात्रा में होती हे क्युकी वह पे सूरज की सीधी तेज़ किरणे पड़ती है और पानी जल्दी गरम हो जाता है । 
वाष्पीकरण सिर्फ सतह पर ही सिमित नहीं है बल्कि ये पेड़ और पोधो से भी होता है, पेड़ और पोधो के पत्तो में अति सूक्ष्म छिद्र (Stomata) होते है ,जब पेड़ पोधो में पानी की मात्रा अधिक हो जाती है तब वे इनी छिद्रों द्वारा अतिरिक्त पानी को बहार निकल देते है जो बहार निकलते ही सूरज की गरम से भाप बनकर उड़ जाता है इस प्रक्रिया को प्रस्वेदन (Transpiration) कहते है । 


2. संघनन प्रक्रिया (Condensation) = जो पानी अब भाप बनकर ऊपर पहुच गया हे, ऊपर हवा धूल मिटटी के कण और धुआ होता है जिससे ये छोटे छोटे वाष्प के कण चिपक जाते है उसके बाद एक एक करके यह आपस में मिलके बड़ी बड़ी बूदे बन जाती है यह पानी की बूंदे कई mm तक बड़ी हो सकती है यह प्रक्रिया ठंडक में होती और यह ठंडक उपरी वातावरण में होती ही है ये प्रक्रिया वाष्पीकरण परक्रिया (Evaporation) की उलट प्रक्रिया होती है ,जिसमे जल वाष्प में बदल जाता है जबकि इस संघनन प्रक्रिया में वाष्प वापिस पानी में बदल जाता है । हर समय वातावरण में जल वाष्प के रूप में मोजूद रहता है कभी कम मात्रा में तो कभी ज्यादा मात्रा में ,तो हम यह कह सकते है की संघनन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे जल जो की वाष्प के रूप में हवा में इदर उदार विचरण कर रहा होता है वो ठंडक मिलने पे वापिस तरल पानी (बूदो) के रूप में बदल जाता है । 


3. अवक्षेपण प्रक्रिया (precipitation) = यह प्रक्रिया जल चक्र का अति आवश्यक हिस्सा है इसमें ऐसा होता है की जो पानी की बड़ी बड़ी बूदे संघनन प्रक्रिया के द्वारा बनती है वो ज्यादा भार की वजह से हवा में ज्यादा देर तक नहीं रह पाती और फिर बारिश, ओले और बर्फ के रूप में नीचे पृथ्वी पे आ गिरती है बारिश हर जगह एक जैसी नहीं गिरती कही कही यह बहुत ज्यादा होती है तो कही बहुत कम और कही तो कई कई साल होती ही नहीं है उद्हारण के लिए भारत के मेघालय राज्य के चेरापूंजी नमक जिले में सबसे ज्यादा लगभग 1100 cm प्रति वर्ष बारिश गिरती है ,जबकि सबसे कम वर्षा दक्षिण अमेरिका के चिली में होती है बारिश को मापने के लिए जो यंत्र इस्तेमाल होता है उसको Rain Gauge कहते है । इस प्रक्रिया के होने के लिए (Gravity) गुरुतवाकर्षण का भी बहुत बड़ा योगदान होता है क्युकी पृथ्वी का गुरुतवाकर्षण ज्यादा होता था इसके वजह से बारिश की बूदे निचे पृथ्वी की और खिची चली आती है । 


4. संचयन (collection) = यह जल चक्र प्रक्रिया का अंतिम पड़ाव है यानि की जो पानी पृथ्वी से ऊपर वायुमंडल में गया था और बारिश के रूप में वापिस निचे पृथ्वी पे आ गया है यह जल अब निचे नदियों के रास्ते महासागरो में पहुच जाता है कुछ झीलों में ,तालाबो में ,और बाबरियो में संचय हो जाता है इसी प्रक्रिया को संचयन कहते है ,इस प्रक्रिया में ज्यादातर पानी सागरों में चला जाता है जो फिर दोवारा जल चक्र की पूरी प्रक्रिया से गुजर कर वापिस सागर में मिल जाता है और यह चक्र ऐसे ही चलता रहता है । 


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