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Hawa kaise chalti hai

Hawa kaise chalti hai,what is wind
Hawa kaise chalti hai

हवा कैसे चलती है 

आज हम यह समझेगे की हवा कैसे चलती है । हमारी पृथ्वी के आस पास वायुमंडल होता है जो की कई हज़ार किलोमीटर सतह से ऊपर की और बहुत सी गैसों से मिलके बनता है जिसमे 78% नाइट्रोजन गैस (Nitrogen) होती है, 21% ऑक्सीजन (Oxygen), 0.9% आर्गन और अति सूक्ष्म मात्रा में (carbon dioxide) कार्बन डाइऑक्साइड, नीयन (Neon), वाष्प के कण धूल मिटटी इतिआदी होते है, इस मिश्रित गैसों को ही वायु कहते है, हवा का चलना हमारे लिए बहुत लाभप्रद है सबसे जरुरी हमें गर्मी से राहत देता है हवा के चलने के कई कारण होते है जैसे पृथ्वी की अलग अलग जगहों का तापमान ,पृथ्वी की परिक्रमा सूर्य के इर्द गिर्द ,पृथ्वी का गुमाव अपनी दुरी पर इतिआदी

सूर्ये की रौशनी पृथ्वी पे हर समय और हर जगह एक जैसी नहीं पड़ती जिसकी वजह से अलग अलग जगह अलग-अलग गति से गर्म या ठंडी होती है जैसे की ध्रुवीय क्षेत्र (उत्तर और दक्षिण ) पे सूर्ये की किरने तिरशी पड़ती है जिसके कारण उस जगह की हवा ठंडी रहती है वही दूसरी तरफ भूमध्य रेखा (equator) पे जो सूर्ये की किरणे पड़ती है वो बिलकुल सीधी पृथ्वी की सतह पे गिरती है और बहुत तेज़ी के साथ पृथ्वी की सतह को गरम कर देती है क्युकी ठोस सतह(land) तरल सतह (water) से जल्दी गरम हो जाती है इसलिए उस ठोस सतह की ऊपर वाली हवा गरम पानी की सतह से जल्दी गरम हो जाती है , अब होता ऐसा है की गरम हवा हलकी होने के कारण ऊपर उठने लगती है ,यह प्रक्रिया काफी बड़ी तादाद में होती है खासतोर पे मैदानी क्षेत्रो में, अब यह हवा ऊपर जाकर फैलने लगती है इस समय इन जगहों पे हवा का दबाब (pressure)कम होने लगता है ,जिस प्रकार नदिया ऊंचाई से निचे की तरफ बहती हे ठीक उसी तरह हवा भी उच्च दबाब क्षेत्र से कम दबाब क्षेत्र की तरफ जाने की कोशिश करती है, अब आसपास के क्षेत्रो से ठंडी हवा इस खाली जगह पे पहुच जाती है ,ठंडी जगहों पे हवा का दबाब ज्यादा होता है इसलिए वो ज्यादा दबाब से कम दबाब क्षेत्रो में आ जाती है, इससे हवा में गतिविधि होती है, और हवा चलती है ।

वायु और पवन में अंतर 


रुकी हुई हवा को वायु भी कहते हैं और जब यह एक जगह को छोड़कर दूसरी जगह पर जाती है तब यह चलने लगती है और उसी को पवन कहलाती है पवन जब क्षैतिज (Horizontal)हॉरिजॉन्टल दिशा पर चलती है तो इसको हम इसको हम पवन कहते हैं परंतु जब (Vertical)वर्टिकल दिशा में चलती हैं तब हम इसको वायु धारा कहते हैं पृथ्वी के अलग-अलग स्थान पे अलग-अलग तरह से तापमान होने की वजह से (कही गरम तो कही ठंडा)वहा पर उच्च और निम्न दबाव से क्षेत्र बन जाते जाते है जिसके वजह से रुकी हुए हवा चलने लग पड़ती है ।

हवा चलने के और भी कई कारण होते है । संषेप में समझिये ;

हवा बहती है जब वायु के दाब (Pressure) में बदलाव होता है पर कैसे तो सुनिए जब हवा भूमध्य रेखा पर या उसके आसपास के क्षेत्रों में बहुत गर्म होती है तो उसका घनत्व (Density) कम हो जाता है क्योंकि गर्म होने पर चीजें फैलती (Expand) होती है तो घनत्व कम होने पर वायु के कण हल्के हो जाते हैं और ऊपर उठते हैं अब आपने पढ़ा तो होगा ही कि जब तापमान बढ़ेगा तो दाब घटता है तो जब हवा ऊपर उठी तो उस जगह पर कम दबाव का क्षेत्र बन गया उस खाली स्थान  को भरने के लिए ठंडी जगहो जैसे द्रुवो से (जहां पर वायु का दबाव अधिक होता हैं) वहां से वायु संतुलन कायम करने हेतु इस खाली स्थान (कम दबाब वाले क्षेत्र) को भर देती है तो इस तरह वायु एक जगह से दूसरी जगह पहुंचती है तो इस तरह हवा चलती है 

हवा हमेशा उत्तरी ध्रुव पर वामा व्रत (Anticlockwise) और दक्षिणी ध्रुव पे दक्षिणाव्रत (Clockwise) चलती है और यह होता है पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने से यानि की रोटेशन (Rotation) की वजह से और इस तरह एक बल बनता है जिससे हवा अपनी दिशा के विपरीत दिशा में चलने लगती है इस बल को फ्रांस के वैज्ञानिक Coriolis ने 1835 में खोजा था जिसकी वजह से इस बल का नाम Coriolis Force पड़ा । कम दबाब के क्षेत्र जितना ज्यादा संकरा (Narrow) होगा उसमें उतनी तेजी के साथ ज्यादा दाब वाले से क्षेत्र (Poles) से हवा घुसेगी और जिसके परिणाम स्वरूप उतनी ही तेज हवा भी चलेगी पृथ्वी का आकार गोल है उसके हर तरफ पर्वतों, झीले, मैदान और कहीं समुंद्र भी हैं इस तरह सूर्य की किरणों द्वारा उसके अलग-अलग हिस्से समय-समय पर ठंडे और गर्म होते रहते हैं इस तरह अलग-अलग तरह के भूखंडों (Structure) की वजह से लगातार हवा बहती रहती है हवा को मापने के यंत्र को (Anemometer) पवन वेग मापी यंत्र कहते हैं और इसकी गति Meter/Sec और Mile/Hr में मापते हैं ।

पवने मुख्य तीन प्रकार की होती है 

1. प्रचलित / भूमंडलीय / सनातनी या ग्राहिये पवने (Planetary Winds) = यह पवने पूरे वर्ष भर सिर्फ एक ही तरफ की दिशा में ही चलती रहती है, यह पवने पूरे पृथ्वी के दबाब पेटियों (Pressure Belt) पर निरंतर चलती रहती है इसके भी तीन उप प्रकार हैं 

व्यापारिक पवने (Trade Winds) = इन पवनों की मदद से प्राचीन काल में नाविकों की काफी मदद होती थी क्योंकि इसके चलने से उनको दिशा का ज्ञान होता था और साथ ही उनके जहाज इसे की वजह से चलते भी थे यह पवने अपने आसपास के क्षेत्र में वर्षा करती है, यह पवने भूमध्य रेखा के 30° N (उत्तर) और 30° S (दक्षिण) के दरमियान ही चलती है यह पवने दोनों गोलार्धो पर एक जैसी ही चलती है और उत्तरी गोलार्ध पर इसको उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवने तथा दक्षिणी गोलार्ध पर दक्षिण-पूर्वी व्यापारीक पवने कहते हैं, यह पवने उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब (Sub Tropical High Pressure Zone) वाले क्षेत्र से भूमध्यरेखीय निम्न दाब (Equotorial Low Pressure Zone) वाले क्षेत्र की ओर बहती है 

पछुआ पवने (Westerlies) = यह हमेशा व्यापारिक पवनों की विपरीत दिशा में बहती है यानि की पश्चिम से पूर्व (West to East) की ओर, और 40° से 65° देशांतर पर ही चलती है यह उपोष्णकटिबंधीय उच्च दाब (Sub Tropical High Pressure Zone) से उपध्रुवीय कम दाब (Sub Polar Low Pressure Zone ) वाले क्षेत्र की ओर चलती है, उत्तरी गोलार्ध पर इसकी दिशा पश्चिमी-पूर्व से उत्तर-पूर्व होती है तथा दक्षिण गोलार्ध पर उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पूर्व की ओर होती हैं 

ध्रुवीय पवने (Polar Winds) = यह पवने ध्रुवीय उच्च दाब (Polar High Pressure Zone) वाले क्षेत्र से उपध्रुवीय कम दाब (Sub Polar Low Pressure Zone ) की ओर बहती है  यह पवने उत्तरी गोलार्ध पर उत्तर-पूर्वी दिशा से दक्षिण-पूर्वी दिशा की ओर बहती है, वही दक्षिणी गोलार्ध पर दक्षिण-पूर्वी से उत्तर-पूर्वी दिशा की ओर बहती है और जब कभी यह पवने पछुआ पवन से टकराती है तब उस जगह पर चक्रवात का निर्माण होता है यह 60° N और 60° S से ऊपर की ओर दोनों गोलार्धो तक बहती रहती है 
यह पवने जब 40° N या S पे चलती है तो गरजती चालीसा (Roaring Forties) कहलाती है 
यह पवने जब 50° N या S पे चलती है तो प्रचंड पचासा (Furious Fifties) कहलाती है 
यह पवने जब 60° N या S पे चलती है तो चीखती साठा (Shrieking Sixties) कहलाती है 

2. दैनिक / मौसमी / सामयिक (Monsoon Winds) यह पवने किसी खास जगह पर अपने मौसम के मुताबिक ही चलती हैं यानी जब मौसम होगा तब चलेंगे और जब मौसम खत्म तो जी नहीं चलेंगे इसी के चलने से ग्रीष्म काल में वर्षा एवंम शीत ऋतु में अकाल पड़ते हैं यह पवने दिन-रात में तापमान के अंतराल से बनती हैं ।
इसके उप प्रकार इस तरह है ।

समुंद्री समीर (Sea Breeze) = जब दिन को पृथ्वी की सतेह समंदर की अपेक्षा जल्दी गर्म होती है तो वहां की हवा ऊपर उठती है फिर समुंदर की ठंडी हवा उस सतेह के खाली स्थान को भरने हेतु बहने लगती है यही है पवन जो दिन में समुंदर से सतेह की तरफ रहती हैं । इसी को कहते है समुंद्री समीर, यह समीर ग्रीष्म काल में दिन के समय चलती है 

सथल समीर (Land Breeze) = रात को पृथ्वी की सतेह जल्दी ठंडी हो जाती है और सतेह की अपेक्षा समुद्र के ऊपर हवा गर्म होती है अब यह हवा ऊपर उठती है तो सतेह की हवा समुद्र की ऊपर खाली स्थान भरने हेतु सतेह से समुद्र के तरफ बहने लगती है इसी को कहते है स्थल समीर, यह समीर रात को चलती है  

घाटी समीर (Valley Breeze) = दिन को पर्वत गरम जल्दी होता है नीचे घाटी की अपेक्षा, जिस कारण घाटी की हवा ऊपर पर्वत के कम दबाव क्षेत्र की ओर बहती है इसको हम घाटी समीर कहते  हैं  

पर्वत समीर (Mountain Breeze) = रात को पर्वत घाटी की अपेक्षा जल्दी ठंडा होता है तो वहां की उच्च दाब की हवा नीचे कम दबाव के क्षेत्र में बहने लगती है इस कारण पर्वत पवन समीर है  

3. स्थानीय पवने (Local Winds) = यह कुछ खास तरह की पवने होती हैं जो कुछ खास जगहो पर ही चलती हैं और उनका चलना आसपास के छोटे से क्षेत्र पर ही निर्भर करता है यह पवने प्रचलित पवने के उल्ट चलती है  
स्थानीय पवने के प्रकार निचे दिए गए है  

चिनूक (Chinook) = यह गर्म और शुष्क होती हैं और उत्तर अमेरिका के रॉकी पर्वत की आस पास चलती है इसके कारण पर्वतों और घाटियों में बर्फ पिघल जाती है और पशुपालन के लिए यह हवाएं काफी लाभकारी सिद्ध होती हैं  

फ़ोन (Fohen) = यह गर्म व शुष्क पवने अलप पर्वत की उत्तरी ढलानों से नीचे उतरती रहती है साथ ही यह पवने स्विटज़रलैंड में अंगूर की खेती के लिए अति आवश्यक है  

सिरोको (Sirocco) = यह पवने काफी गर्म और शुष्क होती है और सहारा रेगिस्तान में आंधी का कारण बनती है और इटली तक पहुंचती है  

हबूब (Haboob) =  यह पवने बहुत धूल लेकर आंधी के साथ उत्तरी सूडान में चलती रहती हैं और बहुत वर्षा का कारण भी बनती है  

सिस्टन (Cysten) = यह पवन बहुत तेज चलती है और यह इरान में बहती है और सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही बहती है  

जेट स्ट्रीम (Jet Stream) = यह वह पवने है जो अत्यधिक गति (150 किलोमीटर प्रति घंटा से लेकर 300 किलोमीटर प्रति घंटा) के साथ क्षौभमंडल में चलती रहती है, उत्तरी गोलार्ध के आसपास के क्षेत्र में यह ज्यादा चलती है  


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